Monday, November 4, 2019

मैं, भविष्य सा




अंतहीन होती हैं ये ,
व्यर्थ !
प्रतीक्षारत 
बरसाती शामों का 
कोई योग नहीं होता है !

ब्रह्म कमल 
की मनुहार सा -
मेरा मन 
एक वादे पर खिलता 
दूजे पर टूट जाता है !

चिंगारी से आग, और ,
आग से चिंगारी 
शब्दों से खेलता 
कलाकार ,अक्सर 
खुदा हो जाता है ! 

एक तिलिस्म लिये ,
यादों का पीला घेरा 
जंगल में आग सा 
तिमिर,अकिंचन 
आलोकित हो जाता है !

तब मैं, 
भविष्य सा ,
अचकचाता ,
संशयित ,
स्तब्ध हो जाता हूँ !

~ स्वाति मृगी ~ 
४. ११. २०१९ 

Friday, September 21, 2018

वो जो कुछ कहना है , कह ले .... मंटो !

वो जो कुछ कहना है , कह ले .... मंटो !

आज मंटो साहब से मुलाकात है अपनी ! वो जिसका अंदाज़-ए-बयान ही जुदा था - वो जो जुदा होकर भी हम सबकी , मेरी आपकी, अपनी बातें करता था ! नवाज़ को मंटो का किरदार निभाते देखना अपने आप में एक उत्सव ही होगा ! आज की शाम 'मंटो' फिल्म के नाम !
बात एक मुल्क की आज़ादी के पहले और बात की नहीं है सिर्फ़ यहाँ -- बात है जज़्बे की, बात है एक आज़ाद सोच की, बात है हर उस परतंत्रता से निज़ात पाने की जिसने आपको कस कर पकड़ रखा हो या आप खुद ही जिसकी गिरफ़्त में हों ! जब तक आप किसी और सोच , किसी और व्यक्ति, किसी और राजा के अधीन हैं या रहेंगे, आप खुद नहीं हो सकते, आप जी नहीं रहे होते ! स्पंदन तो रहता है किन्तु संवेदना नहीं ! संवेदनाओं को पराधीन कर कैसा जीना ? और पराधीनता चाहे जैसी हो, कभी सुकून नहीं देती ! हम अपने आप को छलते रहते हैं मात्र किन्तु मन के भीतर अथाह सागर भूचाल मचाता है !

ज़रूरत है इस अथाह सागर को, अपने मन को, अपनी सोच को शांति प्रदान करने की ! अपने आप से दूर भाग कर नहीं, अपने आप को समक्ष रख उन सारी बातों से, बंधनों से आज़ादी पाने की ज़िद जो हमें किसी भी तरह से बंधन में बाँधती हो ! आज़ादी से ही शांति संभव है ! मैं खुद को आज़ाद रखूँगी -- मैं आज़ाद रहूँगी !

आज विश्व भर में शांति दिवस मनाया जा रहा है -- खुद को इससे बेहतरीन तोहफ़ा नहीं हो सकता था !
मंटो फिल्म पर और भी बहुत कुछ.. देख कर आने के बाद !

मंटो !

Tuesday, May 26, 2015

मैं घुमंतू ..


मैं घुमंतू ..
हर यात्रा अधूरी रह जाती है....
हम कभी पहाड़ों पे चढ़ना भूल जाते हैं
तो कभी रह जाता है सूर्यास्त
कभी किसी शिवाले में बैठ कर भी
ओम का नाद,
कंठ में अवरुद्ध हो जाता है...  
तो कभी
छलांगे मारते दृग को निहारना !
मैंने, एक घुमंतू ने,
हमेशा ये पाया है,
कभी कोई यात्रा पूर्ण नहीं हो सकती !


मन हमेशा
बल खाती नदी की सिलवटों में पीछे रह जाता है
अप्रैल में देखे नयनाभिराम
फूलों से बौराए सेब के पेड़–बागीचे
मुझे फिर जुलाई में
बुलाते हैं,
सेबों से लदे पेड़ देखने!

अखरोट के गिरे छिलके उठाते
मुझ घुमंतू के हाथ,
उस रोज़ अचानक रुक गए--
जब ठूंठ होते आये पेड़ की ओर देख
एक चरवाहा बोला,
‘बीबी जी ,
कभी इसमें सौ दो सौ अखरोट
एक ही डाल पर लटकते थे
अब सिर्फ़ एखाद दो’
और मेरा मन
उन सैकड़ों अखरोटों के बारे में
सोचने लगता है !

मैं घुमंतू
खूब जानने लगी हूँ
यात्रा में मिले लोग
अगली दफ़ा उसी यात्रा में,
शायद दोबारा नहीं मिलेंगे !
जो मिले हैं, मुझसे जुड़े हैं
वो पूरी यात्रा भर भी
संग नहीं चलेंगे !
जो स्नेह आज है, वो कल नहीं रहेगा
द्वेष का लेकिन पता नहीं ...
शायद वो बढेगा !

मैं घुमंतू,
एक यायावर सी,
समझ गयी हूँ
हर बार, हर यात्रा पर,
ऐसा बहुत कुछ है
जो अविजित बचा रहेगा
और जिसे प्राप्य करने के लिए
सदैव अनगिन आव्हान
हवा में घुले मिलेंगे !
और यही जो अविजित रह गया
जो प्राप्य होकर भी अप्राप्य रहा ,
मुझ घुमंतू को सीखा गया है ,
अनासक्ति
अलगाव
और निर्लिप्तिता के
संविधान !
की,
सब कुछ पीछे छोड़,
नयी यात्राओं पर निकल जाना...

तटस्थता,
घुमंतू होने का पहला नियम है

~ स्वाति-मृगी ~ 


Sunday, October 5, 2014

स्मृतियों के सागर



इन स्मृतियों से
प्यार हुआ जाता है
जीना जिनके बिन हो मुश्किल
उन्ही पे दिल कुर्बान हुआ जाता है!
उन चाहतों में बिंध
सजाई थी एक डोली 
जीवन उसी मिलन पर 
निसार हुआ जाता है!

स्मृतियों के आगोश में
हाँ, तड़पन बहुत है
स्पंदित फिर फिर किन्तु क्यूँ
उनमे ही ह्रदय हुआ जाता है!
वो खुशबु सा समाया रहा
बदन में मेरे
याद करूँ कहीं जो
ये बसंत बौराया जाता है!

स्मृति के सागर
इतने भी बुरे नही होते,
यादों के मंज़र कभी,
धुंधले नही होते!
चाहना न चाहना
कहाँ हाथ में होता है
यही सोच के हर दफा
स्मृतियों से ही प्यार हुआ जाता है!

Saturday, October 4, 2014

सरस्विता पुरस्कार ~ चित्रा मुदगल जी के हाथों वर्ष २०१४ का सर्वश्रेष्ठ कहानी के लिए सरस्विता पुरस्कार प्राप्त हुआ ~




सितम्बर २०१४, नयी दिल्ली. 

अपने नन्हें शिशु कदम बढाते हुए जब एक साथ तीन गुरुतर वरीष्ठों का स्नेहाशीष प्राप्त हो जाता है तो वो जीवन का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार अपने आप बन जाता है !!

१९ सितंबर २०१४ का दिन मेरे लिए अविस्मर्णीय बन गया है ! दिल्ली में इस रोज़ महान कथाकारा सुश्री चित्रा मुदगल जी के हाथों मुझे "कहानी लेखन में श्रेष्ठ सृजनात्मक योगदान हेतु " २०१४ का सरस्विता पुरस्कार प्राप्त हुआ !! साथ ही महान कवि श्री बाल स्वरुप राही और सुप्रसिद्ध व्यंगकार एवं वरीष्ठ कवयित्री डॉ सरोजिनी  प्रीतम जी  का आशिर्वाद भी !




जब खुशियों पर विश्वास करने को मन करता है ! 

आदरणीया चित्रा मुदगल जी के हाथों पुरस्कार प्राप्त करना अपने आप में बहुत बड़ा पुरस्कार था .... 


इस पुरस्कार को आदरणीया सरस्वती प्रसाद , महान राष्ट्रिय कवि की मानस 
पुत्री के नाम पर उनके परिवार ने स्थापित किया है | यह पुरस्कार  कहानी, 
कविता एवं संस्मरण के क्षेत्र में श्रेष्ठ सृजनात्मक योगदान हेतु दिए जाते हैं |

 जिनके प्रेम और सान्निध्य से शब्दों को उनकी पहचान मिल जाती थी, 
ऐसी कलम थी सरस्वती प्रसाद "अम्मा जी " की ! 

१९ सितम्बर २०१४ को उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर उनके परिवार , 
"प्रसाद कुटी" की ओर से उनकी किताब "एक थी तरु" का विमोचन किया 
गया ! इसमें अमाजी द्वारा लिखी गयी कवितायेँ , कहानियाँ एवं लेख हैं और 
साथ ही परिवार के हर सदस्य द्वारा कथ्य रूप में तर्पण भी !

जब से यह किताब हाथ में आयी है, उसे शब्द दर शब्द खुद में गुनने की 
कोशिश में लगी हूँ !

पुस्तक के अंतिम कवर का एक चित्र आपको वो सब कह देगा जिसे मैं 
पूर्णतया बताने में अक्षम हूँ !

हिन्द युग्म प्रकाशन को "एक थी तरु" जैसी दर्ज़ेदार पुस्तक का प्रकाशन  करने के लिए पुनः बधाई !

रश्मि प्रभा दीदी जी एवं उनके समस्त परिवार को ऐसे अनूठे साहित्य समागम 
पर दिल से बधाई और अम्मा जी को पुनः एक दफ़ा स्नेह पगा सलाम !!

सादर !







स्थापित कवयित्रियों से मुलाकात का सुयोग !!





कुछ तो असर 'उसकी' दुआओं का होता होगा 'मृगी' ...
आज भी कुछ हाथ 'माँ' की तरह दुलारते हैं मुझे !

~आदरणीया चित्रा मुदगल जी के हाथों सरस्विता पुरस्कार प्राप्त किया और 
साथ ही उनका लाड़,आशिर्वाद भी ! १९ सितम्बर, दिल्ली .









प्रसाद कुटी द्वारा प्रदत्त सरस्विता पुरस्कार, हमारी प्यारी अम्मा - सरस्वती प्रसाद की सदैव सुन्दर यादों को संचयित करता रहेगा और उन्ही की तरह सभी लेखकों को प्रोत्साहित करता रहेगा, यह विश्वास उद्दाम है !!

आप सभी के स्नेह और आशीर्वाद की पुनः अभिलाषी हूँ !!

सादर !

Friday, October 3, 2014

अनवरत स्मारिका (शमशेर सम्मान ) में मेरी कुछ कवितायेँ प्रकाशित हुई हैं

सितम्बर २०१४ ~

अच्छा लगता है जब हमारी रचनायें अधिक से अधिक 

पाठकों तक पहुँचती हैं |

आदरणीय प्रताप राव कदम जी के द्वारा ज्ञात हुआ है 


की मेरी कुछ कवितायेँ "अनवरत स्मारिका" में 

प्रकाशित हुई हैं | 

अनवरत संस्था ,"शमशेर सम्मान " (कवि शमशेर बहादुर सिंह की 


स्मृति में स्थापित) आयोजन के अलावा वर्ष में एक बार अपने समय के 

महत्वपूर्ण रचनाकारों की रचनाओं का प्रकाशन भी करती है , अनवरत 

स्मारिका में |


यह "अनवरत स्मारिका" हर वर्ष खंडवा [ म.प्र.] से जारी होती है |"


आपके आशिर्वाद की अभिलाषी हूँ !